हरियाणा के प्रसिद्ध किले व स्थापत्य (Famous forts and architecture of Haryana) - IT/ITes-NSQF & GK

हरियाणा के प्रसिद्ध किले व स्थापत्य (Famous forts and architecture of Haryana)

नमस्कार आप सभी का हमारी वेबसाइट "https://raazranga.blogspot.com" पर स्वागत हैं, आज में आप सभी को "हरियाणा के प्रसिद्ध किले (Famous Fort of Haryana)" के बारे में जानकारी दूंगा । 


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हरियाणा के प्रसिद्ध किले व स्थापत्य (Famous Fort and Architecture of Haryana)

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∆ रामग़ढ़ का किला (Ramgarh Fort):-

                यह किला हरियाणा के पंचकुला जिले मैं बॉर्डर पर स्थित है । यह किला चंदेल राजपूतो का है । यह भी हरियाणा के प्रसिद्ध किले मे से एक था । लेकिन अब इसके आधे हिस्से में होटल व रिसोर्ट है जो अपने आप मे देखने लायक है । हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर घराने के एक पुत्र 360 साल पहले रामपुर आकर बसे थे और इस किले का निर्माण किया था ।


∆ रानीपुर का किला (Ranipur Fort):-

                  यह किला पंचकुला जिले के रायपुररानी कस्बे में स्थित है और करीब 500 साल पुराना ऐतिहासिक किला है गुरु गोबिंद इस समय की रानी के आग्रह पर इस किले में आकर ठहरे थे, । वह रानी की भक्ति से काफी प्रसन्न हुए और रानी साहिबा को एक पुत्र रतन पैदा हुआ जिनका नाम राय सिंह रखा गया । इस बालक के नाम पर एक किला बनवाया गया, जो बाद में एक कस्बे के रूप मे रायपुर के नाम से आबाद हुआ, जो अब रायपुररानी के नाम से प्रचलित है । किसी जमाने मे यह भी हरियाणा के प्रसिद्ध किले मे से एक था लेकिन अब इस किले की इमारत में वर्तमान में गुरुद्वारा है जहाँ पर काफी संख्या में श्रदालु आते है ।


∆ बुढ़िया का किला / बीरबल का रंगमहल (Budia fort / Theater of Birbal ):-

                        बीरबल का रंगमहल, बुडिया नामक गांव (यमुनानगर) में होने के कारण इसे बुडिया का किला के नाम से भी जाना जाता हैं । यह किला यमुनानगर जिले में स्थित है । यह यमुनानगर से 12 किलोमीटर दूर बुढ़िया नामक गाँव के पास दूर जंगलों मे स्थित है । बुढ़िया यमुनानगर का प्राचीन शहर है ऐसा माना जाता है कि बीरबल का जन्म इसी स्थान पर हुआ था । इस बात के सैकड़ों प्रमाण हैं कि मुगल बादशाह अकबर के समय में बीरबल की गिनती सबसे प्रभावी लोगों में होती थी, लेकिन यह बात शायद सभी को पता नहीं है कि राजदरबार के फैसलों में बीरबल का काफी दखल था । इतिहासकार इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे हैं कि जहां बीरबल अपने हास्य के लिए जाने जाते थे, वहीं दूसरी ओर वे अपने वर्तमान और सूझबूझ भरे लहजे के लिए भी प्रसिद्ध थे । अकबर को जब भी किसी सुरक्षित स्थान पर जाना होता था या विश्राम स्थल की तलाश होती थी तो बीरबल उस कार्य को बखूबी अंजाम देते थे । बीरबल ने हरियाणा में रंगमहल बनवाकर इसका उदाहरण प्रस्तुत किया था । बुजुर्गों की माने तो हरियाणा के बुड़िया में सैकड़ों साल पहले बनी इस दो मंजिला इमारत को बीरबल ने मुगल बादशाह अकबर की बाकी रानियों के लिए बनवाया था । ऐसे प्रमाण भी सामने आए हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि अकबर बादशाह यहां कई महीनों तक रहे । रानियों के लिए बने इस भवन को अकबर के काल से ही रंगमहल के नाम से जाना जाता है । इस दो मंजिला इमारत को कारीगरों ने छोटी ईंटों और चूने से बनाया था । मजे की बात यह है कि इस इमारत में कहीं भी लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया गया है । रंगमहल अपने शुरुआती समय में बगीचे के बीच में था । इसके अलावा यहाँ एक कुआँ भी था, लेकिन अब इन सभी वस्तुओं को केवल पहचान के आधार पर ही सत्यापित किया जा सकता है । इस महल की एक शानदार विशेषता यह थी कि इसे हवादार बनाया गया था और इसके सभी दरवाजे एक जैसे थे । यह कहना गलत नहीं होगा कि मुगल बादशाह अकबर के नौ रत्नों में शुमार बीरबल का पुराना शहर समय के साथ अपनी बेमिसाल और तारीख़ी विरासत खोता जा रहा है, क्योंकि दुख इस बात का है कि मुगल कालीन रंगमहल जर्जर हो गया है । यहां बने प्राचीन स्थलों का कानून द्वारा रखरखाव नहीं किए जाने का एक कारण है । बुड़िया कस्बे से सटे रकबे में सैकड़ों साल पहले बना रंगमहल कभी भी ढह सकता है । शुद्ध चूने से बनी इस इमारत का कुछ हिस्सा और छोटे-छोटे रिंट भी गिरे हैं ।

                

∆ छाछरोली का किला (Chhachhrauli fort):-

                     इस किले को कलसिया रिसायत का किला भी कहते है । यह पोंटा साहिब मार्ग पर 15 किलोमीटर दूर छाछरोली गाँव (यमुनानगर) मे स्थित है । यह किला अंग्रेजों द्वारा पंजाब के सरदार रणजीत सिंह और सरदार सिंह को पुरस्कार के रूप में दिया गया था । इस किले को "रानी की खिड़की" के नाम से भी जाना जाता है ।


∆ चनेटी ग्राम का स्तूप (Stupa of Chaneti Village):-              

                    यह जगाधरी से 3 किमी दूर स्थित है । गांव के करीब 100 वर्ग मीटर के क्षेत्र में ईंटों से बने 8 मी० की ऊँचाई वाला एक विशाल मकबरा है । गोल आकार में बना, यह एक पुराना बौद्ध स्तूप है ।यहाँ अशोक स्तूप के अवशेष प्राप्त है । यह हरियाणा के प्रसिद्ध किले मे से एक है । हेन त्सांग के अनुसार, यह राजा अशोक द्वारा बनाया गया था ।मौर्य राजा अशोक के शासनकाल के दौरान, प्राचीन शहर श्रुघ्ना यानी आधुनिक सुघ बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया । जैसा कि चीनी तीर्थयात्री युआन चुंग के यात्रा के बारे में बताया गया है कि यह जगह दसवें स्तूप और एक मठ से सुशोभित हुई थी । चनेती में यह स्तूप युआन चवंग द्वारा संदर्भित दसियों में से एक था । इस पक्की ईंट स्तूप का निर्माण करने के लिए, गाढ़ा परतों को एक से दूसरे पर रखा गया था । हर बार अंतर्निहित परत पर कुछ जगह छोड़ने के लिए, ताकि पूरी संरचना को एक अर्धपालन देखा जा सके । इस प्रकार, यह स्तूप टैक्सिला में शाहपुर और धर्मराजिका स्तूप से मेल खाती है । इस स्तूप के चारों ओर पत्थर की रेलिंग का कोई निशान नहीं मिला । शायद, यह लकड़ी की रेलिंग हो सकती थी । यह हर्मिका के लिए जगह थी, जो छातावली (छाता) को जन्म देती थी । कृष्णा काल के दौरान पुरानी परिधि पथ (प्रदक्षिणा पथ) के चारों ओर चार तीर्थस्थलों को स्तूप में जोड़ा गया और चारों ओर घूमने के लिए नीचे नए मार्ग बनाया गया ।


∆ ढोसी पहाड़ी का किला (Dhosi hills fort):-

                         ढोसी पहाड़ी के किले को सोलहवीं सदी के हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने बनवाया था । ढोसी की पहाड़ियाँ (महेंद्रगढ़, हरियाणा) अपनी दुर्लभ जड़ी-बूटियों के लिए प्रसिद्ध है । यह हरियाणा के प्रसिद्ध किले मे एक है । इसके नजदीक दक्षिण-पश्चिम की सबसे ऊंची पहाड़ी कुलताजपुर गाँव मे स्थित है जिसकी ऊंचाई 652 मीटर है । वर्तमान में पहाड़ी में मंदिर, एक पक्का तालाब, एक किले के खंडहर, गुफाएं और इसके चारों ओर जंगल हैं । प्राचीन काल में, महाभारत - वनपर्व, पुराण, शतपथ ब्राह्मण आदि जैसे विभिन्न शास्त्रों के अनुसार, पहाड़ी में विभिन्न ऋषियों के आश्रम थे जिन्होंने वैदिक शास्त्रों में योगदान दिया था । इस पहाड़ी का उल्लेख विभिन्न धार्मिक पुस्तकों में भी मिलता है । जैसे-महाभारत, पुराण आदि ।


∆ माधोगढ़ का किला (Madhogarh fort):- 

                      यह किला अरावली पर्वत श्रंखलाओं की माधोगढ़ की पहाड़ी पर स्थित है । माधोगढ़ किला हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में माधोगढ़ गाँव के पास अरावली पर्वत श्रृंखला में माधोगढ़ पहाड़ी के ऊपर स्थित एक किला है । यह किला महेंद्रगढ़ से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इस किले की स्थापना राव गुज़रमल ने 18 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में की थी । यह हिंदू वास्तुशैली का उदाहरण है । 


∆ बीरबल का छता (Birbal's roof):-

                  मुगल शासक शाहजहा के दरबारी एवम् नारनौल (महेंद्रगढ़) के दीवान राय मुकुंद दास ने इसका निर्माण (1628-58) करवाया था । प्राचीन काल मे बीरबल का यहाँ आना जाना था इसलिए इसे बीरबल का छता कहा जाता है । ऐसा माना जाता है की यहाँ पर एक सुरंग है जो दिल्ली, जयपुर व ढोसी की पहाड़ी से जुड़ी हुई है । यह विशाल इमारत निपुणता से नियोजित और अलंकृत है, हालांकि इसका बाहरी भाग अनाकर्षक और नीरस है । यह पांच मंजिला संरचना है जिसमें कई हॉल, कमरे और मंडप हैं । दक्षिण में व्यापक खुली छत, विभिन्न स्तरों पर अण्डाकार मंडप, स्तंभों पर हॉल और एक केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर चलता हुआ बरामदा, एक बार संगमरमर के फव्वारे से सुशोभित, इसे विशालता और प्रकाश प्रदान करते हैं । छत्ता से थोड़ी दूरी पर सराय राय मुकंद दास स्थित है । इमारत में एक अभिलेख है, जिसमें कहा गया है कि शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान, नवाब आसिफ खान के एक नौकर राय-रायण मुकंद दास ने मेहता पूरन मल हरि दास की देखरेख में बुलंद इमारत का निर्माण किया था ।


∆ जल महल (Jal Mahal):- 

                   इसका निर्माण नारनौल (महेंद्रगढ़) के जागीरदार शासक कुली खान से 1591 मे बनवाया था । यह नारनौल के दक्षिण में स्थित है । इतिहास के अनुसार शाह कुली खान ने पानीपत की प्रसिद्व दूसरी लडाई में हेमू को पकडा । उसी काम से प्रसन्न होकर अकबर ने शाह कुली खान को नारनौल को सौंप दिया ।  इसका निर्माण लगभग 11 एकड के विशाल भूखंड पर किया गया है । यह विशाल तालाब के बीच में स्थित है, लेकिन स्मारक तक पहुचने के लिए एक पुल है । विशाल झील के बीच में एक छोटे मल के आकार में इस खुबसुरत मंदिर के निमार्ण मे पत्थर का चुन्ना और पत्थर का उपयोग किया गया है । तालाबा लगभग 400 वर्षो के अंतराल में मिटटी से भर गया था । 1993 में जिला प्रशासन ने हटाना शुरू किया । जलमहल के तालाब से इसकी मिटटी हटा दी गई है ।


∆ कानोड़ का किला (Kanaud fort):-

                   इस किले को महेंद्रगढ़ के किले के नाम से भी जाना जाता है । इस किले का निर्माण 19 वीं शताब्दी में मराठा शासक तांतिया टोपे ने करवाया था । इस किले को वर्गाकार बनाया गया है । पहले इस जगह को कानोंड़ / कान्होड के नाम से जाना जाता था जिसे थानोडिया ब्राह्मणों ने बसाया था ।बाद में कानोंड़ पर पटियाला के शासकों का शासन हो गया । सन् 1861 में पटियाला के शासक नरेन्द्र सिंह द्वारा अपने पुत्र महेंद्र सिंह के सम्मान में इस किले का नाम महेंद्रगढ़ रखा गया । आगे चल कर कानोड को महेंद्रगढ़ कहा जाने लगा ।


∆ हिसार-ए-फिरोजा (Hisar-A-Firoza):-

                फिरोजशाह तुगलक एक अच्छे वास्तुकार थे । उन्होंने अपनी देखरेख में हिसार-ए-फिरोजा का निर्माण करवाया था । इसका अर्थ किला या घेरा है । सन् 1354 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज़शाह ने यहा जिस किले का निर्माण कार्य शुरू करवाया, उसका नाम 'हिसार-ए- फिरोज़ा' पड़ा यानि फिरोज का हिसार । अब समय की यात्रा में केवल हिसार रह गया है । इसका रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है । हिसार का नाम आज देश के प्रमुख शहरों में शुमार हो चुका है । 


∆ गुजरी महल (Gujari Mahal):- 

                  हिसार-ए-फिरोजा में बना गुजरी महल इसकी सबसे सुंदर इमारतों में से एक है और हरियाणा के प्रसिद्ध किले मे से एक है । इसका निर्माण फिरोजशाह तुगलक द्वारा करवाया गया था । हरियाणा के हिसार में मौजूद गुजरी महल एक प्राचीन और प्रमुख ऐतिहासिक जगह है । यह जगह प्रेम की निशानी ही है, क्योंकि फिरोजशाह तुगलक ने अपनी प्रेमिका गुजरी के लिए इस महल का निर्माण करवाया था । इस महल में "लाट की मस्जिद" भी है जो बलुवा पत्थरों के सतंभो से निर्मित की गई है ।


∆ हांसी का किला (Hansi fort):- 

                   हांसी का किला जिसे पृथ्वीराज चौहान का किला और असिगढ़ का दुर्ग (किला) के नाम से भी जाना जाता है । इस किले का निर्माण हिसार जिले के हांसी शहर में 12 वीं सदी में पृथ्वीराज  चौहान ने करवाया था । इस किले के निर्माण का मुख्य उद्देश्य मुगल शासको द्वारा किए जाने वाले आक्रमणों से राज्य की रक्षा करना करना था ।


∆ लोहारु का किला (Loharu fort):-

               इसका निर्माण जयपुर के राजा अर्जुन देव ने 1570 ईस्वी मे लोहारू (भिवानी) में बनवाया था । यह बहुत ही शानदार किला है ।


∆ तोशाम की बरादरी (Community of Tosham):-

                 तोशाम की बरादरी भिवानी में स्थित है । यह बारादरी कस्बे से बाहर एक पहाड़ी की चोटी बड़े ही शान से कस्बे के प्राचीन रूप को बयां करती है । इसे पृथ्वीराज चौहान की कचहरी के नाम से भी जाना जाता है । 


∆ शीशमहल (Shishmahal):-

                  यह शीशमहल हरियाणा के फारुखनगर (गुरुग्राम) में स्थित है । इसका निर्माण मुगलशासक ने सन 1711 में अपनी रानी के लिए करवाया था । इस किले के अंदर बने खंडहर से एक सुरंग किले से कुछ दूरी पर स्थित बाउली तक जाती है जहां रानी हर रोज स्नान के लिए जाती थी । अब यह बाउली इतिहास के पन्नों में कहीं खो कर रह गई है । यह लाल बलुआ पत्थर, लाखौरी, इंटो एवम् झज्जर पत्थर से बना महल है ।


∆ फारुखनगर के किले (Forts of Farukhnagar):-

                     फारुखनगर (गुरुग्राम) का एक छोटा-सा कस्बा है जो इतिहास के पन्नों में अपना अलग ही अस्तित्व रखता है । इस कस्बे की स्थापना एक मुगल शासक फौजदार खान ने 1732 में की थी ।

∆ बादशाहपुर का किला (Badshahpur fort):-

               गुरुग्राम जिले के बादशाहपुर के 20 एकड़ में बना बादशाहपुर का किला मुगलों के शासनकाल से अपने इतिहास को संजोय हुए है । आज अवैध कब्जाधारियों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है ।


∆ सोहना का किला (Sohana fort):-

                    इसका निर्माण 8 वी शताब्दी के राजा मोहन सिंह ने करवाया था । यह गुरुग्राम जिले में स्थित सोहना हरियाणा का एक प्रसिद्ध दार्शनिक स्थल है जहां स्थित दमदमा झील, गर्म पानी का चश्मा, सोहना का किला इत्यादि पर्यटकों को आकर्षित करने का कार्य करते है ।


∆ पटौदी का महल (Pataudi Place):- 

                  हरियाणा के गुड़गांव से 26 किलोमीटर दूर पटौदी में बना यह सफेद महल पटौदी परिवार की निशानी है जो बहुत ही शानदार है । इसका निर्माण 1935 में 8वें नवाब और भारतीय टीम के पूर्व कप्तान इफ्तिखार अली हुसैन सिद्दकी ने कराया था । 


∆ सारस का किला (Saras fort):-

                   यह किला राजा सारस ने बनवाया था ।जमीन से इसकी ऊंचाई 90 फीट से 130 फीट थी । यह एक विशाल दुर्ग था । बठिंडा एवं हनुमानगढ़ के किलों की तरह आक्रमणकारियों के लिए इस किले को भेदना आसान नहीं था ।

∆ जींद का किला (Jind fort):- 

               इस किले का निर्माण 1775 ईस्वी मे राजा गजपत सिंह ने निर्माण करवाया था । यह लगभग पांच एकड़ में फैला हुआ है । इसमें लखोरी ईंट का प्रयोग किया गया है जिससे मौसम का इन पर कोई प्रभाव नही पड़ता और आज भी इन ईंटों का कुछ नही बिगड़ा है । इस किले का नाम राजा गजपत सिंह ने अपने पुत्र फतेह सिंह के नाम पर फतेहगढ़ रखा है ।


∆ भरनौली का किला (Bharnauli fort):-

                   यह किला कैथल जिले के भरनौली में स्थित है । 16वीं शताब्दी में इस किले का निर्माण मुगलों के राज में हुआ था । इस किले को भाई समुदाय के उदय सिंह के पूर्वजों द्वारा बनवाया गया था । यह बहुत ही शानदार इमारत है ।


∆ कर्ण का किला (Karan fort):- 

                यह किला कुरुक्षेत्र में स्थित है राजा कर्ण का किला हरियाणा के प्रसिद्ध किले में से एक है । इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह एक पसंदीदा स्थान है । यह किला तीन अलग अलग सांस्कृतिक रहस्यों को बताता है । बहुत साल पहले यह हरियाणा के प्रसिद्ध किलो मे से एक था लेकिन यह किला अब खंडहर में परिवर्तित हो चुका है । इसे कर्ण का टिला भी कहते है ।


∆ शेख चिल्ली का मकबरा (Tomb of Sheikh Chilli):-

                 यह मकबरा कुरुक्षत्र के थानेशर में स्थित है । इसे 1650 ईस्वी में दाराशिकोह ने प्रसिद्ध सूफी संत शेख चिल्ली की याद में बनवाया था । इसे शेख चिल्ली का मकबरा और हरियाणा का ताजमहल भी कहा जाता है । शेख चिल्ली एक बहुश्रुत विद्वान, एक सम्मानित सूफी संत और एक आध्यात्मिक शिक्षक थे । मुग़ल बादशाह शाहजहां का बेटा दारा शिकोह शेख चिल्ली का शिष्य और एक  प्रशंसक था । बताया जाता है शेख चिल्ली से राजकुमार ने कई महत्त्वपूर्ण बातें सीखी । शख चिल्ली का मकबरा कुरुक्षेत्र के बाहरी इलाके में एक ऊंचे टीले पर बनाया गया है । ये मकबरा बहुत ही खूबसूरत है जो मुग़ल वास्तुकला को बखूबी बखान करता है । इस मकबरे को बनाने में बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है । ये मकबरा परिपत्र ड्रम के आकार का है जहां मकबरे का गुम्बद नाशपाती के आकार का है । महान संत की कब्र मकबरे के निचले सदन में बिलकुल केंद्र में स्थित है । इस मकबरे के ठीक बगल में संत कि पत्नी की भी कब्र है जिसका निर्माण सैंड स्टोन से किया गया है और फूलों की डिजाइन से जिसे अलंकृत किया गया है । देखने पर यह मकबरा कुछ हद तक आगरा के ताजमहल से मिलता जुलता है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा दोनों ही इमारतों को संरक्षित इमारतों का दर्जा दिया जा चुका है ।


∆ दरियापुर का किला (Dariyapur fort):-

                यह किला सोनीपत के दरियापुर में स्थित है । यह किला पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था जिसका नाम सेनापति दरिया सिंह के नाम पर रखा गया था लेकिन 1192 ईस्वी मे मोहमद गौरी ने इस किले को नष्ट कर दिया था ।


∆ कुंजपुरा का किला (Kunjpura fort):-

                   यह करनाल के कुंजपुरा नामक गाँव मे स्थित है । इसे शाहजहां के शासन काल मे 1765 के आस पास बनवाया गया था । यह बिल्कुल खण्डर हो चुका है । इसका सिर्फ प्रवेश द्वार ही बचा है ।


∆ काबुली बाग का किला (Kabuli Bag fort):-

                यह पानीपत की प्रथम लड़ाई (1526) में बाबर ने अपनी जीत की खुशी में बेगम मुसम्मत की याद मे बनवाया गया था । इस किले में एक गार्डन, मस्जिद व टैंक बना हुआ है ।


∆ महम की बावड़ी (Maham Bavadi):- 

                    यह रोहतक के महम नामक स्थान पर स्थित है । इसके अंदर 4 मंजिले है । इसे शाहजी की बावड़ी या कहिए महम की बावड़ी या फिर सबसे प्रचलित नाम ज्ञानी चोर की बावड़ी या गुफा आदि नामो से भी जाना जाता है । इसके पत्थर पर लिखा अधिकारिक नाम है 'स्वर्ग का झरना' जो यहाँ फारसी भाषा में लिखा है । बावड़ी में लगे फारसी भाषा के एक अभिलेख के अनुसार इस स्वर्ग के झरने का निर्माण उस समय के मुगल राजा शाहजहां के सूबेदार सैद्यू कलाल ने 1658-59 ईसवी में करवाया था । इसमें एक कुआं है जिस तक पहुंचने के लिए 101 सीढिय़ां उतरनी पड़ती हैं । इसमें कई कमरे भी हैं, जो कि उस जमाने में राहगीरों के आराम के लिए बनवाए गए थे । आपको बता दें वैसे तो इस बावड़ी को लेकर कई कहानियां गढ़ी गई है, लेकिन इनमें प्रमुख है ज्ञानी चोर की कहानी । कहा जाता है कि ज्ञानी चोर एक शातिर चोर था जो धनवानों को लूटता और इस बावड़ी में छलांग लगाकर गायब हो जाता और अगले दिन फिर राहजनी के लिए निकल आता था । लोगों का यह अनुमान है कि ज्ञानी चोर द्वारा लूटा गया सारा धन इसी बावड़ी में मौजूद है । लोक मान्यताओं के अनुसार ज्ञानी चोर का अरबों का खजाना इसी में दफन है ।


∆ राजा नाहर सिंह का किला (Nahar Singh fort):-

               यह फरीदाबाद के वल्लभगढ़ मे स्थित है ।इस किले को राजा बल्लू के शासन काल मे बनवाया था । लेकिन उस समय यह पूरा नहीं बनवाया था । उसके बाद उसके पुत्र किशन सिंह ने इसका निर्माण पूरा करवाया था । इसमे अजित व बल्लू नाम के दो दरवाजे है । राजा नाहर सिंह हरियाणा के फरीदाबाद जिले में बल्लभगढ़ की रियासत के एक जाट राजा थे । उनके पूर्वज तेवतिया गोत्र के जाट थे जिन्होंने 1739 के आसपास फरीदाबाद में एक किले का निर्माण किया था । वह 1857 के भारतीय विद्रोह में शामिल थे । बल्लभगढ़, फरीदाबाद का छोटा शहर दिल्ली से केवल 20 मील की दूरी पर है । 


∆ किशोरी महल (Kishori Place):-

               यह पलवल के होडल में स्थित है । इसका  निर्माण 1754 से 1764 में हुआ । यह महल राजा सूरजमल ने अपनी पत्नी किशोरी की याद मे बनवाया था । राजा सूरजमल ने अपने शासन के दौरान बहुत सी ऐतिहासिक इमारतों को बनवाया था इसी महल मे बाराखम्बा छत्तरी बहुत महत्वपूर्ण है ।


∆ मटिया का किला (Matiya fort):- 

                     यह किला भी पलवल जिले में स्थित है । यह किला मुगलकाल में बनवाया गया था । इस किले के अंदर कई मकबरे है । यह किला अब खंडहर में परिवर्तित हो चुका है । 


∆ तावडू का किला (Tavadu fort):- 

                 यह किला मेवात के नुहु मे तावडू नामक गांव में स्थित है । इस किले में तावडू के इतिहास की जानकारी मिलती है और चारों तरफ ऊँची दीवारे बनी हुई है जिसे बाद में राजा नाहर सिंह किले का नाम दिया गया था । अब इस स्थान पर पुलिस थाना बना दिया है ।


∆ घसरा का किला (Ghasara fort):- 

           यह मेवात जिले के नुहु शहर से 14 कि०मी० दूर घसरा गांव में स्थित है जो अब लगभग खत्म हो चुका है ।

∆ चूहीमल की छतरी और तालाब (Chuhimal's canopy and pond):-

                    नूंह (मेवात) में स्थित 500 साल पुराना सेठ चूहीमल का तालाब और महल खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं । महल से तालाब की दूरी लगभग 500 मीटर है । नूंह के स्थानीय निवासियों के अनुसार महल और तालाब को एक सुरंग के माध्यम से जोड़ा गया है । महल से सेठ और उनकी धर्मपत्नी इसी सुरंग के जरिए तालाब तक जाते थे । तालाब के साथ ही दो धर्मशालाएं थीं, जहां दूर-दूर से आने वाले लोग यहां आराम करते थे । तालाब के साथ ही महिलाओं के लिए अलग से कमरा बना हुआ था, जिसका अब अस्तित्व खत्म हो रहा है । इसके साथ ही सेठ की एक ऐतिहासिक छतरी भी बनी है । जहां पर सेठ फुरसत के लम्हों में आराम किया करते थे और लोगों की समस्याएं सुनते थे । लेकिन आज ये सभी धरोहर खंडहर में बदलते जा रहे हैं । हालांकि छतरी की मरम्मत सेठ के वंशजों द्वारा कराई गई है । अकेले मेवात के लिए ही नहीं बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ऐतिहासिक महल है ।


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