हरियाणा की प्रमुख मृदाएँ/मिट्टीया (Major Soils of Haryana) in hindi
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हरियाणा की प्रमुख मृदाएँ/मिट्टीयाँ (Major Soils of Haryana):-
हरियाणा राज्य का अधिकांश भाग मैदानी है, जिसका निर्माण यमुना, घग्घर, सरस्वती आदि नदियों द्वारा निक्षेपित जलोढ़ मृदा के कारण हुआ है । यह मृदा राज्य के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में पाई जाती है, इस जलोढ़ मृदा का रंग पीला-भूरा है तथा यह बहुत उपजाऊ होती है । भूगोलवेत्ता डॉ. जसबीर सिंह ने राज्य की मृदा को निम्नलिखित छः रूपों में वर्गीकृत किया है जो इस प्रकार हैं:-
1) अति हल्की मृदा (Very light Soil):-
यह बालुका एवं दोमट प्रधान मृदा है, जो सिरसा के दक्षिणी भाग से फतेहाबाद, भिवानी, महेन्द्रगढ़ यानी जो प्रदेश का सबसे शुष्क क्षेत्र है, तथा हिसार तक विस्तृत है । इस मृदा में चूने की अधिकता तथा वनस्पति तत्त्वों का अभाव रहता है । इस मृदा के कण असंगठित होते हैं, जिसके कारण वायु अपरदन अधिक होता है । इस मृदा में जल ग्रहण करने की क्षमता भी कम होती है, इसलिए यह मृदा शीघ्र सूख जाती है । परिणामस्वरूप फसलों को मिलने वाले जल की मात्रा कम हो जाती है । अतः इस मृदा में दाल एवं मोटे अनाजों की कृषि होती है ।
2) हल्की मृदा (Light Soil):-
यह दो प्रकार की होती है जो इस प्रकार हैं:-
i) अपेक्षाकृत बालू-दोमट मृदा (Relatively sandy-loamy soil):- यह दोमट मृदा एवं बलुई दोमट मृदा का मिश्रण है, जिसको रौसली भी कहा जाता है । यह भिवानी, गुरुग्राम, झज्जर, रेवाड़ी व हिसार में मिलती है । इस मृदा में सिल्ट, मृतिका की अपेक्षा बालू अधिक पाया जाता है । इसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए इसमें फसलें अच्छी होती हैं ।
ii) बलुई दोमट मृदा (clay loam soil):- यह मृदा नरम होती है तथा इसमें सिल्ट, मृतिका तथा बालू का अनुपात लगभग समान होता है । यह मृदा सिरसा तहसील व डबवाली तहसील के कुछ ग्रामों में पाई जाती है ।
3) मध्यम मृदा (Medium Soil):-
यह मृदा भारी दोमट, हल्की दोमट व सामान्य दोमट मिट्टयों का सम्मिलित रूप है ।मध्यम मृदा के तीन प्रकार होते हैं जो इस प्रकार हैं:-
i) मोटी दोमट मृदा (thick loamy soil):- यह मिट्टी नूंह व फिरोजपुर झिरका के निचले क्षेत्रों में पाई जाती है ।
ii) हल्की दोमट मृदा (Light loamy soil):- यह मृदा गुरुग्राम के उत्तरी भाग, अम्बाला के दक्षिणी पश्चिमी भाग व नूंह के उत्तर-पश्चिमी भाग तथा मध्य रेवाड़ी में पाई जाती है ।
iii) दोमट मृदा (Loamy soil):- यह राज्य के मध्यवर्ती भाग में मुख्यतः जीन्द, कैथल, सोनीपत, गुरुग्राम तथा कुरुक्षेत्र आदि भागों में पाई जाती है । पर्याप्त वर्षा होने पर इस मृदा में फसल अच्छी होती है ।
4) सामान्य भारी मृदा (Normal heavy soil):-
यह मृदा मुख्यतया यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत व फरीदाबाद में पाई जाती है । इस मृदा पर प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी आने के कारण नवीन जलोढ़ का जमाव होता है, जिसे खादर कहते हैं । ऊंचे भागों पर पाए जाने वाली मृदा को बाँगर कहते हैं । यह मृदा सुखने पर कठोर हो जाती है । इसमें चावल, गेहूँ, गन्ना की फसलें अच्छी होती हैं ।
5) भारी तथा बहुत भारी मृदाएँ (Heavy and very heavy soils):-
यह मृदा 'डाकर' के नाम से भी जानी जाता है । यह मुख्यतः थानेसर, जगाधरी व फतेहाबाद में पाई जाती है । यह मृदा वर्षा ऋतु में चिपचिपी हो जाती है तथा शुष्क मौसम में कठोर हो जाती है । यह कम सुप्रवाहित एवं कम पारगम्य होती है । इसमें चावल, गेहूं, चना तथा जो की फसल एवं कपास की अच्छी खेती होती है । थानेसर तथा फतेहाबाद के घग्घर क्षेत्र में सोलर नामक कठोर चीका मृदा पाई जाती है ।
6) शिवालिक, गिरीपादीय तथा चट्टानी तल की मृदाएँ (Shivalik, Giripadiya and rock bottom soils):-
■ शिवालिक की मृदाएँ (Soils of Shivalik):-
भुरभुरा बलुआ पत्थर, बालू, चीका, बजरी आदि की प्रधानता वाली यह मृदा पंचकुला के कालका, अम्बाला के नारायणपुर व यमुनानगर के जगाधरी क्षेत्रों में पाई जाती है ।
■ गिरीपादीय मृदाएँ (Soils of Giripadiya):-
यह मृदा शिवालिक के गिरिपादीय प्रदेश में पाई जाती है । कालका एवं नारायणगढ़ की तहसीलों में इसे घर या कन्धी मृदा कहते हैं ।
■ चट्टानी तल की मृदाएँ (Rock bottom soils):-
हरियाणा के दक्षिणी भाग में अरावली पर्वत के क्षेत्र में पथरीली एवं रेतीली मृदा पाई जाती है । यह मृदा कम उपजाऊ होती है इसलिए यहाँ कृषि कार्य कम होता है ।
हरियाणा में मृदा अपरदन/कटाव (Soil erosion in Haryana):-
हरियाणा राज्य में मृदा अपरदन मुख्यतः जल तथा वायु द्वारा होता है । मृदा अपरदन द्वारा मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत नष्ट हो जाती है ।मृदा अपरदन को निर्दयी शत्रु या रेंगती मृत्यु भी कहा जाता है । राज्य में मृदा अपरदन को रोकने के लिए अनेक उपाय किए जा रहे हैं; जैसे- मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन, छिड़काव सिंचाई प्रणाली, ड्रिप सिंचाई प्रणाली आदि ।
मृदा लवणता एवं क्षारीयता (Soil salinity and alkalinity):-
कृषि की दृष्टि से मृदा लवणता राज्य स्तर की ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर की भी गम्भीर समस्या है । राज्य में शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में लवणों के निक्षालन हेतु पर्याप्त वर्षा का अभाव रहता है, जिस कारण लवणता विकराल रूप ले लेती है ।
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