11th || IT || CBSE || Unit-2 || Networking and Internet (नेटवर्किंग और इंटरनेट) Part-2 - IT/ITes-NSQF & GK

11th || IT || CBSE || Unit-2 || Networking and Internet (नेटवर्किंग और इंटरनेट) Part-2

नमस्कार आप सभी का हमारी वेबसाइट  "https://raazranga.blogspot.com" पर स्वागत हैं । आज हम इस पोस्ट के माध्यम से "11th- IT- CBSE- Unit-2 - Networking and Internet (नेटवर्किंग और इंटरनेट) Part-2" के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

11th- IT- CBSE- Unit- 2 Networking and Internet (नेटवर्किंग और इंटरनेट):-

Network Topology (नेटवर्क टोपोलोजी):-

                    Network Topology वह तरीका है जिससे अनुसार किसी Network में Computers को आपस में जोड़ा जाता है ।नेटवर्क की संरचना या स्ट्रक्चर बताता है कि नेटवर्क किस तरह से डिजाइन किया गया है । यह 'नेटवर्क टोपोलॉजी' के रूप में भी जाना जाता है । नेटवर्क स्ट्रक्चर में दो स्तर होते हैं फिजिकल और लॉजिकल (Physical and Logical) । 


Physical level:- बताता है कि नेटवर्क के वे parts जो फिजिकली अस्तित्व रखते हैं वे इस प्रकार व्यवस्थित हैं जैसे कि Computer, cable और connector । यह स्तर बताता है कि Network में Computer कहां रखे हैं और Network के सभी parts आपस में किस तरह जुड़े हुए हैं । Network मे Information transfer करने के लिए cable सबसे लोकप्रिय माध्यम है । 

Logical level:-उस रास्ते के बारे में बताता है जिसके जरिए इंफोर्मेशन नेटवर्क में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचती है । यह कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कि कौन-सा application प्रयोग हो रहा है और  Network  में इंफोर्मेशन किस रफ्तार से transfer हो रही है । कंप्यूटर सूचना को इलैक्ट्रिकल सिग्नल (electronic signal) का आदान-प्रदान (exchange) कर शेयर करते हैं । सिग्नल ट्रांसमिशन मीडियम के रास्ते भेजे जाते हैं जो कंप्यूटरों को आपस मे जोड़ते है । Computers को communication medium द्वारा आपस में जोड़ने के कई तरीके हो सकते हैं इसलिए Network Topology भी कई हैं । इनमे Bus, Ring, Star, Mesh तथा Hybrid Topologies प्रमुख Topologies हैं । आइये इन Network Topologies को विस्तार से जानते है जो इस प्रकार है:-

1) Star Topology (स्टार टोपोलोजी):-

                    Star topology में एक Central Server होता हैं जिससे समस्त कम्प्यूटर directly जुड़े होते हैं, Computers central server से होकर ही आपस में communicate करते हैं । स्टार नेटवर्क सबसे आम कंप्यूटर नेटवर्क टोपोलॉजी में से एक है । इसमें कंप्यूटर एक केंद्रीय नेटवर्क कनेक्टर से जुड़े रहते हैं जो आमतौर पर एक Hub या Switch होता है । नेटवर्क में शामिल किसी भी कंप्यूटर द्वारा दूसरे कंप्यूटर को भेजी जाने वाली सूचनाएं Hub या Switch से होकर ही जाती हैं । स्टार नेटवर्क में प्रत्येक कंप्यूटर को जहां तक संभव हो सेंट्रल नेटवर्क कनेक्टर के पास होना चाहिए । कंप्यूटर और कनेक्टर के बीच कंबल की लंबाई 100 मीटर से कम होनी चाहिए । Hub या Switch आमतौर पर 24 कंप्यूटरों तक से जुड़े होते हैं । एक बड़ी इमारत में फैले ऑफिस में यह देखा गया है कि इमारत की हर मंजिल पर अपना खुद का एक Switch या Hub है । Hub या Switch इस तरह एक बड़े लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) से जुड़े हो सकते हैं । Star Network के प्रयोग में लाने पर ज्यादा लागत आती है । स्टार नेटवर्क में हर कंप्यूटर का Hub या Switch से जुड़ा होना जरूरी है । इसमें बड़ी मात्रा में Cable लगती है क्योंकि प्रत्येक कंप्यूटर को स्वतंत्र रूप से Hub या  Switch से जोड़ना होता है । यदि सेंट्रल नेटवर्क कनेक्टर पर खाली ports हो तो स्टार नेटवर्क से किसी अन्य नए कंप्यूटर को जोड़ने के लिए केवल एक cable की जरूरत होती है । यहां नए कंप्यूटर को जोड़ते समय नेटवर्क को बंद करने की कोई जरूरत नहीं होती ।

Star Topology 

2) Bus Topology (बस टोपोलोजी):-

                 इस Topology में एक connecting cable होती है, जिससे समस्त कम्प्यूटर्स directly जुड़े होते हैं, common communication medium की तरह काम करने वाली इस एक मात्र cable को Bus कहा जाता है । एक बस नेटवर्क वह स्ट्रक्चर है जिसमें क्लाइंट कंप्यूटरों का पूरा का पूरा सेट एक संयुक्त कम्युनिकेशन लाइन से जुड़ा होता है । एक समय में केवल एक कंप्यूटर सूचना भेज सकता है । जब कंप्यूटर सूचना ट्रांसफर करता है तो वह इंफॉमेशन cable की पूरी लंबाई में घूमती है । जिस कंप्यूटर को वह सूचना भेजी गई है वह उसे प्राप्त कर लेता है । हर केबल के लिए यह जरूरी है कि उसके पास एक टर्मिनेटर हो । टर्मिनेटर सिंगल्स को cable में बाउंस बैक (bounce back) होने से बचाकर बाधा उत्पन्न होने से रोकता है । किस तरह का टर्मिनेटर चाहिए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि नेटवर्क में किस तरह का केबल इस्तेमाल हो रहा है । Bus Network की बनावट काफी सामान्य होता है क्योंकि प्रत्येक कंप्यूटर cable की लंबाई में एक क्रम से जुड़े रहते है Bus Network  उन कंप्यूटरों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो एक छोटे क्षेत्र में मौजूद हों और यहां सेंट्रल नेटवर्क कनेक्टर की कोई जरूरत नहीं होती । हालांकि Bus Network को set करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली cable की लंबाई आमतौर पर कम होती है । Bus Network का विस्तार करना थोड़ा मुश्किल होता है । इसमे जब कोई नया कंप्यूटर जोड़ा जाता है तो cable को बढ़ाने के लिए उसे तोड़ना पड़ता है और कंप्यूटर को जोड़ा जाता है । जब cable टूटा हो तो नेटवर्क के अन्य कंप्यूटर सूचनाएं ट्रांसफर नहीं कर सकते । यदि कंप्यूटर ठीक से काम नहीं कर रहा हो और सूचनाएं ट्रांसफर करने में इसे दिक्कत हो रही हो तो पूरा नेटवर्क इससे प्रभावित हो जाता है । यह नेटवर्क ज्यादा खर्चीला नहीं है । ज्यादातर बस नेटवर्कों में Copper यानी तांबे की तार से कंप्यूटरों को आपस में जोड़ा जाता है ।


3) Ring Topology (रिंग टोपोलोजी):-

                       इस Topolpgy में कम्प्यूटर्स तथा devices को एक Ring जैसी संरचना बनाते हुऐ आपस में जोड़ा जाता है । सभी कम्प्यूटर्स connecting cable के माध्यम से Ring के आकार की एक closed loop में जुड़े होते हैं, इनमें कोई Server नहीं होता है । यह नेटवर्क कंप्यूटर नेटवर्क की वह Topology होती है जिसमें प्रत्येक Node दो अन्य Nodes से जुड़ी होती हैं और इस तरह एक Ring shape बन जाती है । जब कोई Node सन्देश प्राप्त करता हैं तो यह उस message के साथ जुड़े पते को जांचता है । Ring इस तरह भी डिजाइन हो सकती है जिसमें किसी Malfunctioning अथवा fail Node को bypass किया जा सके । सूचना इसमें केवल एक दिशा में गति करती हैं । जब कोई कंप्यूटर सूचना भेजता है यह उस सूचना को अगले कंप्यूटर को भेजता है । उस सूचना के साथ जो जुड़ा पता अगर अगले कंप्यूटर का नहीं है तो वह उस सूचना को आगे के कंप्यूटर में भेज देता है । यह सूचना एक के बाद एक कंप्यूटर ऐसे ही अगले कंप्यूटर को भेजते रहते हैं जब तक कि वह कंप्यूटर न आ जाए जिसका पता उस सूचना के साथ जुड़ा है । रिंग नेटवर्क में आमतौर पर कंप्यूटर एक दूसरे के पास ही रखे रहते हैं । यह setup के हिसाब से आसान है क्योंकि इसमें cable की एक अकेली Ring से सारे कंप्यूटर जुड़े होते हैं और किसी सेंट्रल कनेक्टर की इसमें जरूरत नहीं होती है । उदाहरण के लिए Hub आदि की । रिंग नेटवर्क का कोई आरंभ या अंत नहीं होता है । इस नेटवर्क का विस्तार समस्या पैदा करता है क्योंकि जब आप इसमें कोई नया कंप्यूटर जोड़ते हैं तो केबल को काटना जरूरी हो जाता है ऐसे में जब तक नया कंप्यूटर जुड़ नहीं जाता नेटवर्क ठीक से काम नहीं करता है । यह नेटवर्क महंगा होता है । क्योंकि इसमें सभी कंप्यूटर एक ही तार से जुड़े होते हैं, इसलिए यदि कंप्यूटर एक दूसरे से कुछ दूरी पर मौजूद हैं तो काफी तार की जरूरत पड़ती है ।

RING TOPOLOGY 

4) Mesh Topology (मेश टोपोलोजी):-

                    यह एक ऐसी Topology है, जिसमें सभी Nodes आपस में Data distribute या वितरित करते है । इसका structure इस प्रकार का होता है कि यह एक जाल की आकृति बनाती है । इसलिए इसे Mesh Topology कहते है । यह नेटवर्क डाटा को उपकरण (devices) और client के बीच आसानी से रुट निर्धारित करने के लिए set किये गए होते है । इस Topology में सभी Network Node अन्य Nodes से connect होते है । इसमें किसी तरह के Central Hub, Switch आदी की आवश्यकता नहीं होती है । इसमें प्रत्येक कंप्यूटर सिर्फ अपने ही Messages को नहीं भेजता है बल्कि यह दूसरे Computers से डाटा का भी Relay करता है । इस टोपोलॉजी में Wired और Wireless दोनो के आधार पर Connection होता है । इस Topology में Message भेजने के लिए Routing या Flooding तकनीक का उपयोग किया जाता है । Routing में एक सन्देश को अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचने के लिए Node से Node तक जाना होता है । Flooding  Technique मे एक नेटवर्क में data को एक Node से दूसरे Node में वितरित करने पर निर्भर करती है । Data को Nodes के Subset द्वारा भेजा जाता है क्योंकि एक ही समय में सभी Nodes का उपलब्ध होना संभव नही है । हर एक Node में Data का एक Subset तो होता है । इस topology को इनमें उपयोग किया जा सकता है जैसे:- चिकित्सा निगरानी में उपयोग, सुरक्षा प्रणालियों में, घर पर निगरानी रखने के लिए, सार्वजनिक सेवा संचार में उपयोग,औद्योगिक के लिए निगरानी और नियंत्रण रखने के लिए इत्यादी ।


5) Tree Topology (ट्री टोपोलॉजी):- 

                        यह टोपोलोजी ट्री की shape मे होती है । इसिलिए इसे ट्री टोपोलोजी कहा जाता है ।  यह एक विशेष प्रकार की topology होती है जो Star Topology और Bus Topology से मिलकर बना होता है इसमे सारे nodes आपस मिलकर एक पेड़ का आकार बनाते है इसी कारण इसे ट्री टोपोलॉजी कहा जाता है । ट्री टोपोलॉजी को STAR-BUS टोपोलॉजी भी कहा जाता है । इस टोपोलॉजी का उपयोग आमतौर पर कॉर्पोरेट नेटवर्क में database और workstation में Data को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है । इस टोपोलॉजी में, किन्हीं दो linked nodes में केवल एक पारस्परिक संबंध हो सकता है, इसलिए उनके बीच केवल एक link हो सकता है । इस टोपोलॉजी में, design शीर्ष पर शुरू होता है जिसे root के रूप में जाना जाता है जहां से branching cable शुरू होती है । बिना loop वाली branching cable, root को संचार के लिए अन्य सभी Nodes से जोड़ती है । इस टोपोलॉजी में नेटवर्क को configure करना मुश्किल होता है । इस तरह के टोपोलॉजी में बहुत सारे कंप्यूटर होते है जिसकी वजह से इस नेटवर्क की speed slow हो जाती है । इसमें ज्यादा cable की जरुरत पड़ती है । इस टोपोलॉजी को install करना बहुत ही costly होता है ।


6) Hybrid Topology (हाइब्रिड टोपोलोजी):-

                           इस टोपोलोजी में अलग-अलग Topology जैसे Bus, Ring, Star या Mesh Topology आदि का mix रुप होता हैं । वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) सामान्यतौर पर Hybrid Network ही होता है । एक बड़ा नेटवर्क बनाने के लिए यह नेटवर्क कई तरह के स्ट्रक्चर से जुड़ा होता है । उदाहरण के लिए, एक कंपनी अपने एक office में Star Topology अपना सकती है तो दूसरे में Bus topology । ये अलग-अलग नेटवर्क Hybrid Network बनाने के लिए माइक्रोवेव (Microwave) या सैटलाइट (satellite) से जुड़े हो सकते हैं । यह नेटवर्क आमतौर पर वहां बनता है जब एक नेटवर्क को बढ़ाकर बढ़ते ट्रैफिक को व्यवस्थित करने का प्रयास किया जाता है । यह नेटवर्क अलग-अलग Network Topology को आपस में जोड़ने के लिए विभिन्न उपकरणों का इस्तेमाल कर सकता है जैसे Hub, Router और Bridge इत्यादी । इस नेटवर्क का setup थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि जो उपकरण इसमें इस्तेमाल किए जा रहे हैं उन्हें विभिन्न नेटवर्क स्ट्रक्चरों को साथ-साथ कार्य करने की सुविधा देनी होती हैं । जब हाइब्रिड नेटवर्क में कोई error या कमी आ जाती है तो उस समस्या का source ढूंढ़ना काफी मुश्किल हो जाता है । ऐसी कंपनी जो एक बड़े Hybrid Network को use करती है अपना खुद के नेटवर्क के लिए support department रखती है ।



एक नेटवर्क पर कंप्यूटर और उपयोगकर्ताओं की पहचान (Identification of computers and users over a network):-

मैक पते (MAC Address):-
                                      इसका पुरा नाम मिडिया एक्सैस कण्ट्रोल ऐड्रेस है । एक बार नेटवर्क स्थापित हो जाने के बाद, नोड्स आपस में संवाद कर सकते हैं । लेकिन उचित संचार के लिए, नोड्स विशिष्ट रूप से पहचाने जाने योग्य होने चाहिए । यदि कोई नोड X किसी नेटवर्क पर नोड Y के लिए कुछ जानकारी भेजता है, तो यह अनिवार्य है कि नोड X और Y नेटवर्क पर विशिष्ट रूप से पहचाने जाने योग्य हों । आइए देखें कि यह कैसे हासिल किया जाता है । प्रत्येक एनआईसी का एक सार्वभौमिक रूप से अनूठा पता होता है जो उसके निर्माता द्वारा उसे सौंपा जाता है । इस पते को कार्ड के मैक (मीडिया एक्सेस कंट्रोल ऐड्रेस) पते के रूप में जाना जाता है । इसका मतलब है कि एनआईसी के साथ एक मशीन को उसके एनआईसी के मैक पते के माध्यम से विशिष्ट रूप से पहचाना जा सकता है । NIC का MAC पता स्थायी होता है और इसमें कोई बदलाव नहीं होता है । मैक पते 12-अंकीय हेक्साडेसिमल (या 48 Bit) संख्याएं हैं । परंपरा के अनुसार, मैक पते आमतौर पर निम्नलिखित दो प्रारूपों में से एक में लिखे जाते हैं:-

MM MM MM :SS :SS :SS 
MM-MM-MM-SS-SS-SS

MAC Address के फर्स्ट हाफ (MM MM MM ) में एडेप्टर निर्माता का आईडी नंबर होता है । मैक एड्रेस का सेकेंड हाफ (SS:SS:SS) उसके निर्माता द्वारा एडेप्टर (NIC) को सौंपे गए सीरियल नंबर का प्रतिनिधित्व करता है । उदाहरण के लिए, निम्नलिखित MAC Address में, 00:A0:C9: 14:C8:35 उपसर्ग 00:A0:C9 इंगित करता है कि निर्माता Intel Corporation है । और अंतिम तीन नंबर 14:C8:35 इस NIC (Network Interface Card) को निर्माता द्वारा दिए गए हैं ।

आईपी पता (IP Address):-
                         
                           नेटवर्क में प्रत्येक मशीन की एक और विशिष्ट पहचान संख्या होती है, जिसे उसका आईपी पता (IP Address) कहा जाता है । एक आईपी पता 4 Bytes या 32 Bits का एक समूह होता है, जिनमें से प्रत्येक 0 से 255 तक की संख्या हो सकती है । एक सामान्य आईपी पता इस तरह दिखता है:-  Example:- 59.177.134.72 

       हमारे लिए याद रखना आसान बनाने के लिए, IP पते आमतौर पर दशमलव प्रारूप में ऊपर दिए गए फॉर्मेट की तरह "बिंदीदार दशमलव संख्या" के रूप में व्यक्त किए जाते हैं । एक नेटवर्क पर, एक मशीन का IP पता, न कि उसके NIC के MAC पते का उपयोग इसे पहचानने के लिए किया जाता है । क्या आपको IP प्रोटोकॉल याद है? IP प्रोटोकॉल पैकेट को रूट करने के लिए अपने IP पते के साथ एक मशीन की पहचान करता है । MAC एड्रेस का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब किसी खास मशीन को टारगेट किया जाना हो । उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि हम कुछ नेटवर्क संसाधनों तक पहुँचने के लिए एक विशिष्ट PC को ब्लॉक करना चाहते हैं । यदि हम PC के IP एड्रेस का उपयोग करते हैं, तो पीसी स्थायी रूप से अवरुद्ध नहीं होता है क्योंकि अगली बार नेटवर्क से कनेक्ट होने पर इसका IP पता बदल सकता है । इसके बजाय, यदि PC के मैक पते का उपयोग इस उद्देश्य के लिए किया जाता है, तो काम हो जाता है । एक IP (इंटरनेट प्रोटोकॉल) पता एक अद्वितीय 4 अंकों का हेक्साडेसिमल नंबर होता है जो नेटवर्क पर प्रत्येक नोड को सौंपा जाता है । किसी नोड की IP पता सेटिंग्स को उपयोगकर्ता द्वारा बदला जा सकता है आप सोच सकते हैं कि IP पता MAC पते से कैसे भिन्न होता है । वास्तव में, IP पता नेटवर्क व्यवस्थापक (Administrator) या इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) द्वारा असाइन किया जाता है जबकि MAC पता निर्माता द्वारा असाइन किया जाता है । इस प्रकार यदि एक कंप्यूटर को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में स्थानांतरित (transfer) किया जाता है, तो उसका IP पता बदल जाता है जबकि मैक पता वही रहता है । IP पते से आमतौर पर कंप्यूटर के अस्थायी स्थान को ट्रैक करना संभव होता है लेकिन मैक के साथ ऐसा नहीं है ।

Domain Name:-
   
                                डोमेन नाम (Domain  Name) एक नामकरण है जो इंटरनेट पर किसी भी वेबसाइट या ब्लॉग (Website or Blog) की पहचान करता है । एक डोमेन नाम Character, Digit और Special characters जैसे किसी भी वर्ण का संयोजन हो सकता है । इसमें विभिन्न एक्सटेंशन जैसे:- .com, .org, .net, .edu, .gov, .in, .mil, .info etc हो सकते है ।Domain Name के घटक भी एक दूसरे से डॉट(.) द्वारा एक दुसरे से अलग रहते हैं । हर Domain Name में टॉप लेवल डोमेन (TLD) एविएशन होते हैं जो उस संस्था के प्रकार के बारे में बताते है जो इससे जुड़ी रहती है । डॉट कॉम (.com) वह नाम है जो कभी कभी उस संस्था को परिभाषित करता है जिसके पास com का Top Level Domain है । डोमेन नेम सिस्टम (DNS) वह सिस्टम है जो इंटरनेट पर डोमेन नेम और उनसे संबंधित आईपी एड्रेस (IP Address) स्टोर रखता है । हर बार जब भी आप कोई Domain Name देते हैं, इंटरनेट सर्वर (DNS server) उसे संबंधित IP Address में translate कर डाटा को सही कंप्यूटर तक भेज देते हैं । 
IP Address---> 198.71.156.51

Domain Name----> www.google.com 

इसमे डॉट कॉम (.com) Top Level Domain है ।

Domains and types of Domains 

.com------> Commercial domain 

.net--------> Gateway or Host 

.org--------> Non-profit organization 

.edu-------> Educational & research 

.gov -------> Government 

.mil--------> Miltary Agency 

.biz --------> a business 

.store------> goods for sales 

.info--------> Information services 

.aero-------> Air transport company 

Country Specific Domain Names:

.in - India

.au - Australia

.ca- Canada

.ch - China

.nz - New Zealand

.pk - Pakistan

.jp-Japan

.us - United States of America

                            डोमेन नाम समाधान (Domain Name Resolution) डोमेन नाम से संबंधित IP पता प्राप्त करने की प्रक्रिया है । यह इस प्रकार होता है:- मान लीजिए कि आप किसी वेबसाइट पर जाने के लिए वेब-ब्राउज़र (Web Browser) में एक URL का उल्लेख करते हैं । डोमेन नाम के अनुरूप सर्वर का आईपी पता खोजने के लिए ब्राउज़र पहले आपके कंप्यूटर की जांच करता है ।

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